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Sunday, May 24, 2020

Man Tarpat Hai Hari Darshan Ko Aaj..

2:28 AM 0





Lyrics :-

Hari Om
Hari Om
Hari Om
Hari Om
man tadpat Hari darshan ko aaj
man tadpat Hari darshan ko aaj
more tum bin bigde sagre kaaj
ho
vinati karat hoon rakhiyo laaj
man tadpat Hari darshan ko aaj

tumhre dwaar kaa main hoon jogi
aaa aaa
tumhre dwaar kaa main hoon jogi
hamri or nazar kab hogi
sun more vyaakul man ka baat,
tadpat Hari darshan ko aaj
man tadpat Hari darshan ko aaj

bin guru gyaan kahaan se paaun
aaa aaa
bin guru gyaan kahaan se paaun
deejo daan hari gun gaaun
sab guni jan pe tumhraa raaj,
tadpat Hari darshan ko aaj
man tadpat Hari darshan ko aaj

murli manohar aas na todo
murli manohar mohan giridhar hari om
ho o
dukh bhanjan mora saath na chhodo
Hari Om
Hari om
Hari
Hari Om
mohe darshan bhikshaa de do
murli manohar mohan giridhar hari om
mohe darshan bhikshaa de do
aaj de do aaj,
murli manohar mohan giridhar hari om
murli manohar mohan giridhar hari om
murli manohar mohan giridhar hari om
murli manohar mohan giridhar hari om
murli manohar mohan giridhar hari om
murli manohar mohan giridhar hari om
murli manohar mohan giridhar hari om
murli manohar mohan giridhar hari om
murli manohar mohan giridhar hari om..


One of the great songs of all times in Bollywood movie history for several reasons.
This Bhajan is written by Shakeel Badayuni and it is composed by Naushad. The divine voice belongs to the one and only Rafi. The lyrics, the music, and the voice -- they are just out of this world.
Bharat Bhooshan is the fortunate actor to lip sync on this song..


Man Maila Aur Tan Ko Dhoye

2:21 AM 0


मन मैला और तन को धोए,
फूल को चाहे,कांटे बोये...कांटे बोये ।
मन मैला और तन को धोए...

करे दिखावा भगति का क्यों उजली ओढ़े चादरिया ।
भीतर से मन साफ किया ना, बाहर मांजे गागरिया ।
परमेश्वर नित द्वार पे आया, तू भोला रहा सोए ॥
मन मैला और तन को धोए...

कभी ना मन-मंदिर में तूने प्रेम की ज्योत जगाई ।
सुख पाने तू दर-दर भटके, जनम हुआ दुखदायी ।
अब भी नाम सुमिर ले हरी का, जनम वृथा क्यों खोए ॥
मन मैला और तन को धोए...

साँसों का अनमोल खजाना दिन-दिन लूटता जाए ।
मोती लेने आया तट पे, सीप से मन बहलाए ।
साँचा सुख तो वो ही पाए, शरण प्रभु की होए ॥
मन मैला और तन को धोए...

Panchmukhi Hanuman Kavach

1:32 AM 0


श्री गरुड उवाच । 
अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि श्रृणुसर्वाङ्गसुन्दरि । यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमतः प्रियम् ॥ १॥ 

पञ्चवक्त्रं महाभीमं त्रिपञ्चनयनैर्युतम् । बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिद्धिदम् ॥ २॥ 

पूर्वं तु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम् । दन्ष्ट्राकरालवदनं भृकुटीकुटिलेक्षणम् ॥ ३॥ 

अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम् । अत्युग्रतेजोवपुषं भीषणं भयनाशनम् ॥ ४॥ 

पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम् ॥ सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम् ॥ ५॥ 

उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दीप्तं नभोपमम् । पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृन्तनम् ॥ ६॥ 

ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम् । येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यं महासुरम् ॥ ७॥ 

जघान शरणं तत्स्यात्सर्वशत्रुहरं परम् । ध्यात्वा पञ्चमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम् ॥ ८॥ 

खड्गं त्रिशूलं खट्वाङ्गं पाशमङ्कुशपर्वतम् । मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुम् ॥ ९॥ 

भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रां दशभिर्मुनिपुङ्गवम् । एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम् ॥ १०॥ 

प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरणभूषितम् । दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् ॥ ११॥ 

सर्वाश्चर्यमयं देवं हनुमद्विश्वतोमुखम् । 
पञ्चास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णवक्त्रं शशाङ्कशिखरं कपिराजवर्यम । पीताम्बरादिमुकुटैरूपशोभिताङ्गं पिङ्गाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि ॥ १२॥ 

मर्कटेशं महोत्साहं सर्वशत्रुहरं परम् । शत्रु संहर मां रक्ष श्रीमन्नापदमुद्धर ॥ १३॥ 

ॐ हरिमर्कट मर्कट मन्त्रमिदं परिलिख्यति लिख्यति वामतले । यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं यदि मुञ्चति मुञ्चति वामलता ॥ १४॥

इदं कवचं पठित्वा तु महाकवचं पठेन्नरः । एकवारं जपेत्स्तोत्रं सर्वशत्रुनिवारणम् ॥ १५॥ 

द्विवारं तु पठेन्नित्यं पुत्रपौत्रप्रवर्धनम् । त्रिवारं च पठेन्नित्यं सर्वसम्पत्करं शुभम् ॥ १६॥ 

चतुर्वारं पठेन्नित्यं सर्वरोगनिवारणम् । पञ्चवारं पठेन्नित्यं सर्वलोकवशङ्करम् ॥ १७॥ 

षड्वारं च पठेन्नित्यं सर्वदेववशङ्करम् । सप्तवारं पठेन्नित्यं सर्वसौभाग्यदायकम् ॥ १८॥ 

पठेन्नित्यमिष्टकामार्थसिद्धिदम् । नववारं पठेन्नित्यं राजभोगमवाप्नुयात् ॥ १९॥ 

दशवारं पठेन्नित्यं त्रैलोक्यज्ञानदर्शनम् । रुद्रावृत्तिं पठेन्नित्यं सर्वसिद्धिर्भवेद्ध्रुवम् ॥ २०॥ 

निर्बलो रोगयुक्तश्च महाव्याध्यादिपीडितः । कवचस्मरणेनैव महाबलमवाप्नुयात् ॥ २१॥ ॥ 

इति श्रीसुदर्शनसंहितायां श्रीरामचन्द्रसीताप्रोक्तं श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचं सम्पूर्णम् ॥

SHRI KRISHNA GOVIND HARE MURARI HEY NATH NARAYAN VASUDEV

1:20 AM 0


अच्युतम केशवं राम नारायणं,
कृष्ण दमोधराम वासुदेवं हरिं,
श्रीधरं माधवं गोपिका वल्लभं,
जानकी नायकं रामचंद्रम भजे।

अच्युतम केसवं सत्य भामधावं,
माधवं श्रीधरं राधिका अराधितम,
इंदिरा मन्दिरम चेताना सुन्दरम,
देवकी नंदना नन्दजम सम भजे।

विष्णव जिष्णवे शंखिने चक्रिने,
रुकमनी रागिने जानकी जानए,
वल्लवी वल्लभा यार्चिधा यात्मने,
कंस विध्वंसिने वंसिने ते नमः।

कृष्ण गोविन्द हे राम नारायणा,
श्री पते वासु देवा जीता श्री निधे,
अच्युतानंता हे माधव अधोक्षजा,
द्वारका नायका, द्रोपधि रक्षक।

राक्षस क्शोबिता सीताया शोभितो,
दंडा करण्या भू पुण्यता कारणा,
लक्ष्मना नान्वितो वानरी सेवितो,
अगस्त्य संपूजितो राघव पातु माम।

धेनु कृष्टको अनिष्ट क्रुद्वेसिनाम,
केसिहा कंस ह्रुद वंसिका वाधना,
पूतना नसाना सूरज खेलनो,
बाल गोपलका पातु माम सर्वदा।

विध्यु दुध्योतवत प्रस्फुरा द्वाससम,
प्रोउद बोधवल्  प्रोल्लसद विग्रहं,
वन्याय मलय शोभि थोर स्थलं,
लोहिन्तङ्ग्रि द्वयम् वारीजक्षं भजे।

कन्चितै कुण्डलै ब्रज मानानानां,
रत्न मोउलिं लसद कुण्डलं गण्डयो,
हार केयुरगं कङ्कण प्रोज्वलम्,

Ram Ramaiya Jag Rakhware

1:01 AM 0

Hey Bajrang Bali

12:44 AM 0

Maili Chadar Odhe Ke

12:37 AM 0