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Sunday, May 24, 2020

Hanuman Chalisa by Pandit Jasraj & Shankar Mahadevan




हनुमान चालीसा

॥दोहा॥

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि॥

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेस विकार॥


॥चौपाई॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१॥

राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥

महाबीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥

कंचन बरन बिराज सुवेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥४॥

हाथ बज्र और ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेउ साजै॥५॥

संकर सुवन केसरीनन्दन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन॥६॥

विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥७॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥८॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सँवारे॥१०॥

लाय संजीवन लखन जियाये।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये॥११॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥१२॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥१३॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥१५॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥

तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना॥१७॥

जुग सहस्र जोजन पर भानु।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥१८॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥१९॥

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥२२॥

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तें काँपै॥२३॥

भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥२४॥

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥

संकट से हनुमान छुड़ावैं।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावैं॥२६॥

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥२७॥

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥

साधु सन्त के तुम रखवारे।
असुर निकन्दन राम दुलारे॥३०॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन्ह जानकी माता॥३१॥

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥

तुम्हरे भजन राम को भावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै॥३३॥

अंत काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥३४॥

और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥३५॥

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥३७॥

जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बन्दि महा सुख होई॥३८॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥३९॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥४०॥

॥दोहा॥

पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप॥

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सियावर रामचंद्र की जय।।
पवनसुत हनुमान की जय।।

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